Sunday, November 6, 2011

की-बेनकाब होते हुए भी ना उन्हें शर्म है.

हर तरफ चर्चो का बाज़ार गर्म है,
की-बेनकाब होते हुए भी ना उन्हें शर्म है.
जो आज तक देते रहे हैं सच की दुहाई,
वो आज लोलुपतावश उसे ना माने खुदाई.
एक लडकी की अस्मिता को खतरे में डालकर
वो मजे से घूमते है उदात्त भाल कर.
क्या वास्तव में उनके अन्दर का इन्सान मर गया,
या आज अचनक ये जमाना बदल गया.



मासूम हैं,लाचार हैं,बेबस ये बेटियाँ,
उन्हें जीने देगी चैन से खुदगर्ज ये दुनिया.
उनका कसूर क्या है की वो अनमोल रतन है ,
भविष्य को पैदा करने वाली उपजाऊ नस्ल है



कब तक ये जमाना रहेगा उनको दबाता,
क्यों आगे बड़ना उनका न किसी को सुहाता.
हाय राम!ये क्या हो गया है आज लोगो को,
क्यों दृष्टी नही जाती उनकी स्वयम के दोषों पर,
क्या ईश्वर ने उन्हें जन्म दिया है इसीलिए,
की-लूटपाट,छल-प्रपंच,बेईमान
ठ्गीं बलात्कार के लिए,
अरे!कुछ तो शर्म करो ओ! पशु सदृश मानवों!
स्वयम की मनुजता का भक्षण करने वाले दानवों,
क्या लाज तुम्हे आती नहीं बेहयाई पर,
जो सर उठाये चाल रहे हो इतनी रुसवाई पर

- Rajlakshmi Nandini G[23/11/98 ]